दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करते ही ‘कौन-सा विषय चुनें’ यह यक्ष प्रश्न बच्चों के सामने आ खड़ा होता है। माता-पिता को अपनी महत्वाकांक्षाओं को परे रखकर एक नजर कुंडली पर भी मार लेनी चाहिए। बच्चे किस विषय में सिद्धहस्त होंगे, यह ग्रह स्थिति स्पष्ट बताती है। हम सब अपनी पसंद के कार्यक्षेत्र में जाना चाहते हैं, परन्तु बहुत बार हमारी यह इच्छा अधूरी रह जाती है। ज्योतिष एक ऐसा विषय है जिसके माध्यम से इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि कौन सा क्षेत्र हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ है।
प्रत्येक युवक / युवती की यह अभिलाषा होती है कि वह जो भी कार्य करे वह उसकी रुचि के अनुसार हो, क्योंकि रुचि के अनुसार कार्य करने में सफलता शतप्रतिशत मिलती है परन्तु कभी ऐसा भी होता है कि अपनी रुचि वाला क्षेत्र चुन कर भी असफ़लता हाथ लगती है। ऐसा विशेष कर होता है, अतः यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि कौन सा कार्य हमारे अनुकूल होगा जिससे सफलता मिले। हर व्यक्ति में अलग-अलग क्षमता होती है लेकिन स्वयं यह तय करना कठिन होता है कि हममें क्या क्षमता है इसलिये कभी कभी गलत निर्णय लेने से असफलता हाथ लगती है, परन्तु ज्योतिष एक ऐसा विषय है जिसके द्वारा उचित व्यवसाय/क्षेत्र चुनने में मार्गदर्शन लिया जा सकता है।
आजकल हाईस्कूल करने के बाद एक दुविधा यह रहती है कि कौन से विषय चुने जाए जिससे डॉक्टर या इन्जीनियर का व्यवसाय चुनने मे सहायता मिल सके इसके लिये कुन्डली के ज्योतिषीय योग हमारी सहायता कर सकते हैं तो आइये इस पर चर्चा करें कि ज्योतिेष के द्वारा कैसे जाना जाय कि किस क्षेत्र मे सफलता मिलेगी। पण्डित दयानन्द शास्त्री के मतानुसार जातक की जन्म पत्रिका में लग्न, लग्नेश, दशम भाव, दशमेश इन पर विभिन्न ग्रहों का प्रभाव, जातक को उचित व्यव्साय जैसे कि डॉक्टर या इन्जीनियर के क्षेत्र का चयन करने मे सहयता करता है। ग्रहों का विभिन्न राशियों में स्थित होना भी व्यव्साय का चयन करने में मदद करता है। यदि चर राशियों में अधिक ग्रह हों तो जातक को चतुराई, युक्ति निपुणता से सम्बधित व्यवसाय में सफलता मिलती है। वह ऐसा व्यव्साय करता है जिसमें निरंतर घूमना पड़ता हो। और यदि स्थिर राशि में ज्यादा ग्रह होते हैं तो एक स्थान वाला कार्य करता है जिसमे डॉक्टरी मुख्य है तथा द्विस्वभाव राशि में अधिक ग्रह हों तो जातक अध्यापन आदि कार्य करता है जिसमे एक स्थान पर भी तथा काम के सिलसिले मे आना जाना भी आवश्यक होता है।
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि ज्योतिष विज्ञान के आधार पर व्यक्ति की कुण्डली का विवेचन करके करियर के क्षेत्र का निर्धारण किया जा सकता है।आज के युग में सबसे महत्वपूर्ण पेशा डाक्टर का है। डाक्टर को लोग आज भी भगवान के तुल्य ही मानते है। डाक्टरी का पेशा चुनने से पहले इन बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। व्यक्ति में डाक्टरी की शिक्षा लेने की कितनी सम्भावना है ? क्या व्यक्ति चिकित्सा के क्षेत्र सफलता प्राप्त करेगा ? चिकित्सा के क्षेत्र में व्यक्ति फिजीशियन बनेगा, सजर्न बनेगा, या किसी रोग का विशेषज्ञ बनेगा ?
सर्जनों की कुण्डली में सूर्य व मंगल दोनों का मजबूत होना जरूरी होता है। क्योंकि सूर्य, आत्म-विश्वास, ऊर्जा का कारक है और मंगल, टेकनिक, साहस व चीड़-फाड़ से सम्बन्धित होता है। जब तक व्यक्ति आत्म-विश्वास, साहस, टेकनिक व ऊर्जा से लबरेज नहीं होगा तब-तक वह एक सफल सर्जन चिकित्सक नहीं बन पायेगा। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री बताते हैं की किसी भी जातक की कुण्डली में शिक्षा के भाव जन्मपत्री में दूसरा व पंचम भाव शिक्षा से सम्बन्धित होता है। दूसरे भाव से प्राथमिक शिक्षा के बारे में जाना जाता है और पंचम भाव से उच्च शिक्षा का आकलन किया जाता है। किसी भी तकनीकी शिक्षा का करियर के रूप में परिवर्तन होना तभी संभव है, जब पंचम भाव व पंचमेश का सीधा सम्बन्ध दशम भाव या दशमेश से बन जाये। अतः इनका आपस में रिलेशन होना आवश्यक होता है। इससे यह पता किया जा सकता व्यक्ति जिस क्षेत्र में शिक्षा में शिक्षा प्राप्त करेगा, उसे उसी क्षेत्र में जीविका प्राप्त होगी या नहीं ?
ज्योतिष में चन्द्रमा को जड़-बूटी का एंव मन का कारक माना जाता है। यदि चन्द्रमा मजबूत नहीं होगा तो डाक्टर के द्वारा दी गई दवायें लाभ नहीं करेगी। चन्द्र पीडि़त हो या पाप ग्रहों द्वारा दृष्ट हो तो डाक्टर में मरीज को तड़पते हुये देखते रहने की सहनशक्ति विद्यमान होती है। डाक्टर की कुण्डली में चन्द्रमा का सम्बन्ध त्रिक भावों में होना सामान्य योग है।सूर्य व चन्द्रमा जड़ी-बूटियों का कारक होता है और गुरू एक अच्छा सलाहकार व मार्गदर्शक होता है। इन तीनों का सम्बन्ध छठें भाव, दशम भाव व दशमेश से होने से व्यक्ति आयुर्वेदिक चिकित्सक बनता है। चिकित्सक बनने में मंगल ग्रह का विशेष रोल होता है। मंगल साहस, चीड़-फार, आपरेशन आदि चीजों का कारक होता है। मंगल अचानक होने वाली घबराहट से बचाता है और त्वरित निर्णय लेने की शक्ति देता है। चिकित्सा क्षेत्र में गुरू की भूमिका भी अहम होती है। गुरू की कृपा से ही कोई व्यक्ति किसी का इलाज करके उसे स्वस्थ्य कर सकता है। किसी भी व्यक्ति के एक सफल चिकित्सक बनने के लिए गुरू का लग्न, पंचम व दशम भाव से सम्बन्ध होना आवश्यक होता है।
किसी भी जन्म कुंडली में पंचम भाव का दशम भाव से जितना अच्छा सम्बन्ध होगा, अजीविका के क्षेत्र में यह उतना ही अच्छा माना जायेगा। इन दोनों भावों में स्थान परिवर्तन, राशि परिवर्तन, दृष्टि सम्बन्ध या युति सम्बन्ध होना चाहिए। यदि पंचम व दशम भाव के सम्बन्ध से बनने वाला योग छठें या बारहवें भाव में बन रहा है तो चिकित्सा के क्षेत्र में जाने की प्रबल सम्भावना रहती है।
कुछ मुख्य योग निम्न हैं --
- यदि मेष, वृश्चिक, वृष, तुला, मकर या कुम्भ राशि कीं लग्न हो और उनमें मंगल-शनि या चंद्र-शनि या बुध-शनि की युति हो या फिर सूर्य-चंद्र के साथ अलग-अलग तीन ग्रहों की युति हो, तो जातक चिकत्सा विज्ञान की पढाई कर चिकित्सक बनने की प्रबल संभावना रहती है।
- चाहे कोई भी लग्न या राशि हो और केन्द्र में सूर्य-शनि या सूर्य-मंगल-शनि या चंद्र-शनि या चन्द्र-मंगल-शनि या बुध-शनि या बुध-मंगल-शनि या सूर्य-बुध-शनि या चंद्र-बुध-शनि की युति में से किसी की भी युति हो व इनमें कोई दो केन्द्रधिपत्य हो और युति कारक ग्रहों में से कोई अस्त न हो, तो जातक के डाँक्टर बनने की प्रबल संभावना होती है ।
- सामान्यत: यदि लग्न में मंगल स्वराशि या उच्चराशि का होकर बैठा हो तो भी जातक को सर्जरी में निपुण बनाता है । मंगल चुंकि साहस व रक्त का कारक है ओर सर्जन के लिए रक्त और साहस दोनों से संबंध होता है ।
- यदि कुंडली में ” कर्क राशि एवं मंगल बलवान हो तथा लग्न व दशम से मंगल तथा राहू का किसी भी रुप में संबंध हो, तो भी जातक को डॉक्टर बनाता है।
- केतु हमेशा डाक्टर की कुंडली में बली होता है । साथ ही सूर्य, मंगल एवं गुरू भी ताकतवर होने चाहिए। चुंकि सूर्य आत्मा का कारक है एवं गुरू बहुत बड़ा मरीज को ठीक करने वाला होता है ।
- वृश्चिक राशि दवाओं का प्रतिनिधित्व करती है, अत: इसका स्वामी मंगल भी ताकतवर होना चाहिए ।
- भाव 6 एवं उसका स्वामी का यदि भाव 10 से संबंध हो रहा हो, तो भी डॉक्टर बनाने में सहायक होता है |
- यदि मंगल या केतू बली होकर दशवें भाव या दशमेश से संबंध बना रहा हो तो जातक सर्जरी वाला डॉक्टर हो सकता है |
- मीन या मिथुन राशि गुप्त रोगियों से संबंधित दवाओं के डॉक्टर बनाने में के सहायक होता है ।
- यदि पंचमेश भाव 8 मेँ हो, तो भी डॉक्टर बनने की संभावना होती है ।
- यदि भाव 10 में चतुथेंश हो और दशमेश भाव 4 में हो, तो जातक दवाऐ जानने वाला दवाओं के माध्यम से जीवन यापन कर डॉक्टरी पेशा अपनाता है ।
- जिन जातकों की कुंडली में चंद्र व गुरु का बली संबध होता है, वे भी सफल चिकत्सक होते है ।
- यदि कुंडली का आत्म्कारक ग्रह अपने मूल त्रिकोंण का लग्न में पंचमेश से युति कर रहा हो, तो जातक प्रसिद्ध नाम वाला चिकत्सक होता है ।
- यदि अकारात्मक ग्रह या भाग्येश या दोनो वर्गोत्त्मी होकर कारकांश कुंडली में लग्न से केन्द्र में हो, तो रसायन से संबंधित दवाओं का व्यवसाय करने की संभावना रहती है ।
- यदि सूर्य और मंगल की पंचम भाव से युति हो और शनि अथवा राहू भाव 6 में हो, तो जातक सर्जन हो सकता है।
- यदि वृश्चिक राशि में बुध तथा तृतीय भाव पर चंद्र की दृष्टि हो तो जातक मनोचिकित्सक हो सकता है ।
- यदि कुंभ लग्न में स्वगृही मंगल दशम भाव से हो तथा चंद्र व सूर्य भी अच्छी स्थिति में हो, तो ऐसा जातक भी सर्जन हो सकता है ।
- यदि समराशि का बुध हो और लग्न विषम राशि की हो तथा धनेश मार्गी हो तथा अच्छे स्थान में हो, मंगल व चंद्र भी अच्छी स्थिति में हों, तो जातक को विख्यात चिकत्साशास्त्री बना सकता है ।
- यदि कर्क लग्न की कुंडली के छठे भाव में गुरु व केतू बैठे हों, तो जातक होम्योपैथिक चिकित्सक बन सकता है ।
- सिह लग्न कुंडली के दशम भाव में लग्नेश सूर्य हो और दशमेश शुक्र नवमस्थ हो तथा योगकारक पाल शुभ स्थान में बली हो, तो डॉक्टर बनता है ।
- कुंडली में यदि मंगल लाभ भाव में हो तथा तृतीयेश भाव 5 में बैठे एवं शुक्र चंद्र व सूर्य भी अच्छी स्थिति में हों, तो जातक का स्त्री एवं बाल रोग विशेषज्ञ बनने की सभावना होती है
- कुंडली के पंचम भाव में यदि सूर्य-राहू या राहू-बुध युति हों तथा ‘दशमेश की इन पर दृष्टि हो, साथ ही मंगल, चंद्र ,गुरु भी अच्छी स्थिति में हो, तो जातक चिकित्सा क्षेत्र में ज्योतिष प्रयोग द्वारा सफल चिकित्सक बन सकता है|
- यदि कुंडली में लाभेश और रोगेश की युति ताभ भाव में हो तथा मंगल,चंद,सूर्य भी शुभ होकर अच्छी स्थिति में हो, तो जातक का चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ने की संभावना होती है ।
Edited by: Editor




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